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साँझ-13 / जगदीश गुप्त फिर भी न तुम्हें मैं देखँू, अखिर यह कैसी बातें। जायेंगी बिन बरसे ही, क्या यह रस की बरसातें।।१८१।। वह कौन गगन में प्रतिदन, दामिनी-कवच कस आता। ...